Saturday, January 30, 2010

Naman Karo Man Naman Karo man, punya thirth bharat ko

नमन करो मन, नमन करो मन, पुन्यतिर्थ भारत को !
महान मानवता के सागर, स्वरभर उर अविरत को !
किसके आवाहन पर लहरें कहाँ- कहाँ से आई,
कोई ना जाने मिल- जुलकर के सागर ही कहलाईं!
आये आर्य, हूण, भी आये, शक और तुर्क भी आये,
मुग़ल और मंगोल भी आये, इसमें सभी समाये !
एक स्वर ध्वनित सभी का शोणित, विलग करें तो किसको!
ब्रह्मण, छत्रिय, वैश्य, शूद्र सब मुस्लमान, ईसाई !
हिन्दू, शिख, पारसी सभी की एक नियति है भाई !
मान और अपमान भूलकर दलित पतित सब आओ,
माता के अभिषेक की खातिर मिलकर हाथ बढाओ !
स्वर्श नीर से पावन कर दो, अदभर मंगलघट को !
नमन करो मन नमन करो मन, पुण्य तीर्थ भारत को.